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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3   
साहित्यशास्त्रीय अवधारणायें

काव्य भेद (रूप)

प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।

उत्तर -

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मुक्तक किसे कहते हैं? प्रबन्ध काव्य एवं मुक्तक काव्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

काव्य के उद्भव एवं स्वरूप निर्धारण के पश्चात् आचार्यों का ध्यान उसके वर्गीकरण की ओर गया और विविध मतों की स्थापना हुई।

भरत मुनि ने नाट्य निरूपण के माध्यम से काव्य का शास्त्रीय पक्ष प्रस्तुत किया, परन्तु काव्य के वर्गीकरण सम्बन्धी स्थापना करने में असमर्थ रहे।

भामह ने सर्वप्रथम 'काव्यालंकार' में काव्य का विभाजन प्रस्तुत किया है। इन्होंने काव्य भेद निरूपण में चार दृष्टियाँ अपनाई हैं माध्यम भाषा, विषय और स्वरूप। माध्यम की दृष्टि से काव्य दो प्रकार का होता है- पद्य और गद्य। भाषा की दृष्टि काव्य तीन प्रकार का माना जाता है संस्कृत काव्य, प्राकृत काव्य और अपभ्रंश काव्य। विषय-वस्तु के आधार पर काव्य के चार प्रकार होते हैं ख्यातवृत्त, कल्पित वस्तु, कलाश्रित और शास्त्राश्रित स्वरूप के आधार पर काव्य के पाँच प्रकार निर्धारित किये जाते हैं सर्वबन्ध ( महाकाव्य), अभिनेय (नाट्य काव्य), आरण्ययिका (कथा) और अनिबद्ध ( मुक्तक काव्य )।

दण्डी ने अपने ग्रंथ 'काव्यादर्श' में काव्य रूपों पर विचार किया है। उन्होंने इस भेद प्रक्रिया को परिमार्जित और संक्षिप्त कर दिया है। दण्डी ने काव्य के प्रकार के निर्धारण में दो आधार स्वीकार किये - स्वरूप और भाषा। दण्डी ने स्वरूप के आधार पर काव्य के तीन भेद किये हैं पद्य, गद्य और मिश्र। पद्य काव्य को सर्गबन्ध और गद्य काव्य को आरण्यायिका कह सकते हैं, मिश्र काव्य के अन्तर्गत नाटक चम्पू इत्यादि आते हैं। दण्डी ने भाषा के आधार पर काव्य को चार भागों में विभाजित किया है- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मिश्र। उन्होंने स्पष्ट किया कि संस्कृत में सर्गबन्ध, प्राकृत में स्कन्धक, अपभ्रंश में ओसर और मिश्रित भाषा में नाटक इत्यादि लिखे जाते हैं।

वामन ने काव्य - भेद निरूपण में माध्यम तथा विषय को आधार माना है। माध्यम के आधार पर उन्होंने काव्य के दो भेद किये हैं- गद्य और पद्य काव्य प्रभावशाली सौन्दर्यपूर्ण सृष्टि। है। संगीत का समावेश काव्य को आकर्षक बना देता है। वामन ने गद्य काव्य के भी तीन भेद किये हैं :

(1) वृतगन्धि : जहाँ पद्य का आभास प्राप्त हो।
(2) चूर्ण : जहाँ दीर्घ समास रहित ललितपदों से युक्त रचना हो।
(3) उत्कलिका :जहाँ दीर्घ समास तथा उद्धत पद वाली रचना हो।

इसके उपरान्त वामन ने छन्द भेद से पद के भी अनेक भेद किये हैं। विषम की दृष्टि से वामन ने गद्य और पद्य दोनों प्रकार के काव्यों के दो-दो भेद किये हैं- अनिबद्ध और निबद्ध या प्रबन्ध काव्य की रचना संभव होती है। कवि जब तक निबद्ध काव्य की रचना नहीं करता केवल अनिबद्ध तक ही अपने को सीमित रखता है तब तक उसकी शोभा नहीं होती जैसे ज्योति का एक कण पूरा प्रकाश नहीं कर सकता। अनुभूति की तीव्रता के महत्व को देखते हुए मुक्तक और विशेष रूप से गीति काव्य का भी अत्यधिक महत्व है।

रुद्रट ने सामान्य काव्य के अन्तर्गत प्रबन्ध काव्य को दो भागों में विभाजित किया है- उत्पाद्य और अनुपाद्य। उत्पाद्य काव्य में कथा वस्तु तथा नायक तत्व कवि कल्पित होता है जबकि अनुपाद्य में कथा काकंलेवर इतिहासादि प्रसिद्ध होता है। रुद्रट ने पुनः काव्य को 'महाकाव्य' और लघुकाव्य में विभाजित किया। आपने प्रबन्ध काव्य के 12 भेदों का विस्तृत वर्णन कर वर्णक, प्रशस्ति, कुलक और नाटक का नामोल्लेख मानकर कर दिया है।

आनन्दवर्धन ने 'ध्वन्यालोक में काव्य की संरचना पर विशेष बल दिया है। इन्होंने विषयौचित्य के प्रसंग में काव्य रूपों का उल्लेख किया है। काव्य का सबसे छोटा भेद मुक्तक होता है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में निबद्ध मुक्तक के परिवर्धित रूप हैं

सन्दानितक, विशेषक, कलायक और कुलक। काव्य का प्रमुख प्रकार प्रबन्ध है जिसके अन्तर्गत परिकथा, खण्डकथा, सकल कथा और सर्वबन्ध ये दो भेद होते हैं। गद्य के भेद हैं आरण्यायिका और कथा-वस्तुतः ध्वन्यालोक में प्रासंगित रूप में ही काव्य के प्रकारों का उल्लेख हुआ है।

अभिनव गुप्त ने ध्वन्यालोक लोचन में क्रिया की एकता के आधार पर काव्य के चार भेदों की विस्तृत व्याख्या की है। ये निम्न हैं-

(1) सन्दानितक - यदि दो पद्यों में क्रिया समाप्त होती है।
(2) विशेषक - यदि तीन पद्यों में क्रिया समाप्त होती है।
(3) कलायक - यदि चार पद्यों में क्रिया समाप्त होती है।
(4) कुलक -यदि पाँच या पाँच से अधिक पद्यों में क्रिया समाप्त होती है।

अभिनव गुप्त ने काव्य के एक भेद पर्यायबन्ध का उल्लेख किया है। पर्यायबन्ध में अवान्तर क्रियायें समाप्त हो जाती हैं परन्तु उनका उद्देश्य बसन्त इत्यादि किसी एक वस्तु का वर्णन ही होता हैं। परिकथा में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों में किसी एक को लेकर अथवा इन्हीं से सम्बद्ध किसी तत्व को लेकर अनेक प्रकारों के द्वारा अनेक वृतान्तों का वर्णन किया जाता है। कथा के एक भाग का वर्णन खण्ड कथा या खण्ड काव्य कहलाती है। सकल कथा में अनेक इतिवृत्तों का वर्णन किया जाता है और वे समस्त इतिवृत्त फल पर्यन्त दौड़ने वाले होते हैं। सर्गबन्ध उसे कहते हैं जो महाकाव्य रूप में हो, कोई भी पुरुषार्थ जिसका फल हो और जिसमें प्रबन्धात्मक रूप में सम्पूर्ण जीवनवृत्त का वर्णन किया गया हो।

मम्मट ने काव्य के मुख्य तीन भेदों का संक्षेप में वर्णन किया है- ध्वनि-काव्य, गुणीभूत व्यंग्य और चित्रकाव्य।

ध्वनि काव्य में वार्च्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ के अधिक चमत्कार युक्त होने पर उत्तम काव्य की सृष्टि होती है।

गुणीभूत व्यंग्य काव्य में वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ के अधिक चमत्कारी न होने पर मध्यम काव्य की सृष्टि होती है।

चित्रकाव्य में व्यंग्य से रहित 'शब्द-चित्र' तथा 'अर्थ चित्र' युक्त अनम काव्य की सृष्टि होती है। आचार्य विश्वनाथ ने 'साहित्य दर्पण' में काव्य रूपों पर विस्तार से प्रकाश डाला है। उनके अनुसार काव्य के दो भेद 'दृश्य' तथा 'श्रव्य' होते हैं। श्रव्य काव्य के दो भेद - पद्य और गद्य हैं। पद्य के दो भेद हैं मुक्तक और प्रबन्ध। मुक्तक के ही परिवर्तित रूप युग्मक इत्यादि होते हैं। प्रबन्धकाव्य दो प्रकार का होता है - महाकाव्य और खण्डकाव्य। गद्य काव्य चार प्रकार का होता है मुक्तक, वृत्तगन्धि, उत्कलि का प्राय, चूर्णक। मुक्तक वह अनिबद्ध काव्य है जिसमें एक ही छन्द में पूर्ण अर्थ और चमत्कार प्रकट होता है जबकि प्रबन्ध काव्य में छन्द कथा सूत्र की व्यवस्था में पिरोये रहते है। गद्य काव्य को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया है- कथा और आरण्यायिका। गद्य और पद्य मिश्रित काव्य के दो भेद होते हैं- चम्पू और विरुद। करम्भकं अनेक भाषाओं में निर्मित काव्य को कहा जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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